28-11-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

संकल्प को सफल बनाने का सहज साधन

बीज रूप बाप बच्चों प्रति बोले-

आज विश्व रचता, विश्व-कल्याणकारी बाप विश्व की परिक्रमा करने के लिए, विशेष सर्व बच्चों की रेख-देख करने के लिए चारों ओर गये। ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को भी देखा। स्नेही सहयोगी बच्चों को भी देखा। भक्त बच्चों को भी देखा, अज्ञानी बच्चों को भी देखा। भिन्न-भिन्न आत्मायें अपनी-अपनी लगन में मगन देखीं। कोई कुछ कार्य करने की लगन में और कोई तोड़ने के कार्य में मगन, कोई जोड़ने के कार्य में मगन। लेकिन सभी मगन जरूर हैं। सभी के मन में संकल्प यही रहा कि कुछ मिल जाए, कुछ ले लें, कुछ पा लें, इसी लक्ष्य से हरेक अपने-अपने कार्य में लगा हुआ है। चाहे हद की प्राप्ति है, फिर भी कुछ मिल जाए वा कुछ बन जावें यही तात और लात सभी तरफ देखी। इसी के बीच ब्राह्मण बच्चों को विशेष देखा। देश में चाहे विदेश में सभी बच्चों में यही एक संकल्प देखा कि अब कुछ कर लें। बेहद के कार्य में कुछ विशेषता करके दिखावें। अपने में भी कोई विशेषता धारण कर विशेष आत्मा बन जावें। ऐसा उमंग मैजारटी बच्चों में देखा। उमंग-उत्साह का बीज स्वयं के पुरूषार्थ से, साथसाथ समय के वातावरण से सबके अन्दर प्रत्यक्ष रूप में देखा। इसी उमंग के बीज को बार-बार निरन्तर बनाने के अटेन्शन देने का पानी और चेकिंग अर्थात् सदा वृद्धि को पाने की विधि रूपी धूप देते रहें - इसमें नम्बरवार हो जाते हैं। बीज बोना सभी को आता है लेकिन पालना कर फल स्वरूप बनाना इसमें अन्तर हो जाता है।

बापदादा अमृतवेले से सारे दिन तक बच्चों का यह खेल कहो वा लगन का पुरूषार्थ कहो, रोज देखते हैं। हर एक बहुत अच्छे ते अच्छे स्व प्रति वा सेवा के प्रति उमंगों के संकल्प करते कि अभी से यह करेंगे, ऐसे करेंगे, अवश्य करेंगे। करके ही दिखायेंगे-ऐसे श्रेष्ठ संकल्प के बीज बोते रहते हैं। बापदादा से रूह- रूहान में भी बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं। लेकिन जब उस संकल्प को अर्थात् बीज को प्रैक्टिकल में लाने की पालना करते तो क्या होता? कोई न कोई बातों में वृद्धि की विधि में वा फल स्वरूप बनाने की विशेषता में नम्बरवार यथा शक्ति बन जाते हैं। किसी भी संकल्प रूपी बीज को फलीभूत बनाने का सहज साधन एक ही है, वह है -’’सदा बीज रूप बाप से हर समय सर्व शक्तियों का बल उस बीज में भरते रहना’’। बीज रूप द्वारा आपके संकल्प रूपी बीज सहज और स्वत: वृद्धि को पाते फलीभूत हो जायेंगे। लेकिन बीज रूप से निरन्तर कनेक्शन न होने के कारण और आत्माओं को वा साधनों को वृद्धि की विधि बना देते हैं। इस कारण ऐसे करें वैसे करें, इस जैसा करें इस विस्तार में समय और मेहनत ज्यादा लगाते हैं। क्योंकि किसी भी आत्मा और साधन को अपना आधार बना लेते हैं। सागर और सूर्य से पानी और धूप मिलने के बजाए कितने भी साधनों के पानी से आत्माओं को आधार समझ सकाश देने से बीज फलीभूत हो नहीं सकता। इसलिए मेहनत करने के बाद, समय लगाने के बाद जब प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति नहीं होती तो चलते-चलते उत्साह कम हो जाता और स्वयं से वा साथियों से वा सेवा से निराश हो जाते हैं। कभी खुशी, कभी उदासी दोनों लहरें ब्राह्मण जीवन के नाव को कभी हिलाती कभी चलाती। आजकल कई बच्चों के जीवन की गति-विधि यह दिखाई देती है। चल भी रहे हैं, कार्य कर भी रहे हैं लेकिन जैसा होना चाहिए वैसा अनुभव नहीं करते हैं इसलिए खुशी है लेकिन खुशी में नाचते रहें, वह नहीं है। चल रहे हैं लेकिन तीव्रगति की चाल नहीं है। सन्तुष्ट भी हैं कि श्रेष्ठ जीवन वाले बन गये, बाप के बन गये, सेवाधारी बन गये, दुख दर्द की दुनिया से किनारे हो गये। लेकिन सन्तुष्टता के बीच कभी कभी असन्तुष्टता की लहर न चाहते, न समझते भी आ जाती है। क्योंकि ज्ञान सहज है, याद भी सहज है लेकिन सम्बन्ध और सम्पर्क में न्यारे और प्यारे बन कर प्रीत निभाना इसमें कहाँ सहज कहाँ मुश्किल बन जाता।

ब्राह्मण परिवार और सेवा की प्रवृत्ति, इसको कहा जाता है - सम्बन्ध सम्पर्क। इसमें किसी न किसी बात से जैसा अनुभव होना चाहिए वैसा नहीं करते। इस कारण दोनों लहरें चलती हैं। अभी समय की समीपता के कारण पुरूषार्थ की यह रफ्तार समय प्रमाण सम्पूर्ण मंजल पर पहुँचा नहीं सकेगी। अभी समय है विघ्न-विनाशक बन विश्व के विघ्नों के बीच दुखी आत्माओं को सुख चैन की अनुभूति कराना। बहुत काल से निर्विघ्न स्थिति वाला ही विघ्न-विनाशक का कार्य कर सकता है। अभी तक अपने जीवन में आये हुए विघ्नों को मिटाने में बिजी रहेंगे, उसमें ही शक्ति लगायेंगे तो दूसरों को शक्ति देने के निमित्त कैसे बन सकेंगे? निर्विघ्न बन शक्तियों का स्टाक जमा करो - तब शक्ति रूप बन विघ्न-विनाशक का कार्य कर सकेंगे। समझा!

विशेष दो बातें देखी। अज्ञानी बच्चे भारत में ‘सीट’ लेने में वा सीट दिलाने में लगे हुए हैं। दिन रात स्वप्न में भी सीट ही नजर आती और ब्राह्मण बच्चे ‘सेट’ होने में लगे हुए हैं। सीट मिली हुई है लेकिन सेट हो रहे हैं। विदेश में अपने ही बनाये हुए विनाशकारी शक्ति से बचने के साधन ढूँढने में लगे हुए हैं। मैजारटी की जीवन, जीवन नहीं लेकिन क्वेश्चन मार्क बन गई है। अज्ञानी बचाव में लगे हुए हैं और ज्ञानी प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने में लगे हुए हैं। यह है विश्व का हाल चाल। अब परेशानियों से बचाओ। भिन्न-भिन्न परेशानियों में भटकती हुई आत्माओं को शान्ति का ठिकाना दो। अच्छा –

सदा सम्पन्न स्थिति की सीट पर सेट रहने वाले, स्व के और विश्व के विघ्नविनाशक, बीजरूप बाप के सम्बन्ध से हर श्रेष्ठ संकल्प रूपी बीज को फलीभूत बनाए प्रत्यक्ष फल खाने वाले, सदा सन्तुष्ट रहने वाले, सन्तुष्टमणि बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

अहमदाबाद नारायणपुरा होस्टल की कुमारियों से बापदादा की मुलाकात

अपने भाग्य को देख हर्षित रहती हो ना ? उल्टे रास्ते पर जाने से बच गई। गँवाने के बजाए कमाने वाली जीवन बना दी। लौकिक जीवन में बिना ज्ञान के गँवाना ही गँवाना है और ज्ञानी जीवन में हर सेकण्ड कमाई ही कमाई है। वैसे तकदीरवान सभी ब्राह्मण हैं लेकिन फिर भी कुमारियाँ हैं - ‘डबल तकदीरवान’। और कुमारी जीवन में ब्रह्माकुमारी बनना, ब्राह्मण बनना यह बहुत महान है। कम बात नहीं है। बहुत बड़ी बात है। ऐसे नशा रहता है - क्या बन गई! साधारण कुमारी से शक्ति रूप हो गई। माया का संघार करने वाली शक्तियाँ हो ना! माया से घबराने वाली नहीं, संघार करने वाली। कमज़ोर नहीं, बहादुर! कभी छोटीमोटी बात पर घबराती तो नहीं हो ? सदा श्रेष्ठ प्राप्ति को याद रखेंगी तो छोटी छोटी बातें कुछ नहीं लगेंगी। अभी पूरा जीवन का सौदा किया या जब तक होस्टल में है तब तक का सौदा है? कभी भी कोई श्रेष्ठ जीवन से साधारण जीवन में - समझते हुए जा नहीं सकते। अगर कोई लखपति हो उसको कहो गरीब बनो, तो बनेगा? सरकमस्टाँस के कारण कोई बन भी जाता तो भी अच्छा नहीं लगता। तो यह जीवन है - ‘स्वराज्य अधिकारी जीवन’। उससे साधारण जीवन में जा नहीं सकते। तो अभी समझदार बनकर अनुभव कर रही हो या एक दो के संग में चल रही हो? अपनी बुद्धि का फैसला किया है? अपने विवेक से, जजमेन्ट से यह जीवन बनाई है ना! या माँ बाप ने कहा तो चली आई? अच्छा!

(2) कुमारियों ने अपने आपको आफर किया? जहाँ भी सेवा में भेजें वहाँ जायेंगी? पक्का सौदा किया है या कच्चा? पक्का सौदा है तो जहाँ बिठाओ, जो कराओ....ऐसे तैयार हो? अगर कोई भी बन्धन है तो पक्का सौदा नहीं। अगर खुद तैयार हो तो कोई रोक नहीं सकता। बकरी को बाँध कर बिठाते हैं, शेर को कोई बाँध नहीं सकता। तो शेरनी किसके बंधन में कैसे आ सकती! वह जंगल में रहते भी स्वतन्त्र है। तो कौन हो? शेरनी! शेरनी माना मैदान में आने वाली। जब एक बल एक भरोसा है तो ‘हिम्मत बच्चों की, मदद बाप की’। कैसा भी कड़ा बन्धन है लेकिन हिम्मत के आधार पर वह कड़ा बन्धन भी सहज छूट जाता है। जैसे दिखाते हैं - जेल के ताले भी खुल गये तो आपके बन्धन भी खुल जायेंगे। तो ऐसे बनो। अगर थोड़ा सा भी बन्धन है तो उसको योग अग्नि से भस्म कर दो। भस्म हो जायेगा तो नाम-निशान गुम। तोड़ने से फिर भी गाँठ लगा सकते। इसलिए तोड़ो नहीं लेकिन भस्म करो तो सदा के लिए मुक्त हो जायेंगी। अच्छा –